दालबाटी वैसे तो राजस्थान में पसंद की जाती है, किन्तु मालवा-निमाड़ क्षेत्र में भी दाल बाफला के नाम से पसंद की जाती है। यह छुट्टी के दिन पसंद किया जाने वाला पसंदीदा व्यंजन है।
दाल को तुवर दाल, चना दाल, मूंग दाल आदि मिलाकर करके तैयार किया जाता है। दालों को कुछ घंटों के लिए पानी में भिगोने के बाद एक साथ पकाया जाता है। सबसे पहले, खाद्य तेल की एक छोटी मात्रा में एक फ्राइंग पैन में गरम किया जाता है और फिर गर्म तेल में राई और जीरा डाला जाता है। फिर हरी मिर्च, लहसुन और हिंग, प्याज, लाल मिर्च, हल्दी, धनिया, अदरक सहित कुछ मसाले डाले जाते हैं। कुछ क्षेत्रों में दाल को हल्का मीठा और अमचूर या इमली से हल्का खट्टा भी किया जाता है । अंत में, उबली हुई दाल को फ्राय किए मसाले में डालकर पकाया जाता है।
बाटी गोल किन्तु उपर नीचे से थोडी चपटी के होती है । इसका आकार छोटी गेंद के लगभग होता है । इसे गेंहू का थोड़े मोटे आटे के साथ नमक, दहीं, हल्की सी अजवाइन को पानी में गुंथ कर बनाते है । इस आटे के आकार की छोटी गेंद को अच्छी तरह से गर्म पारंपरिक ओवन में पकाया जाता है। जब बाटी सुनहरे भूरे रंग की हो जाती है, तो इसे घी लगाते हैं । कुछ स्थानो पर इसे हलका तोड़ कर घी में भिंजोया भी जाता है । दाल, रवा लड्डू, चावल, पुदीना चटनी, केरी (कच्चे आम) चटनी, प्याज के साथ हरी सलाद, और ताजा छाछ के साथ परोसा जाता है।
चूंकि इसे पकाने के लिए ज्यादा तामझाम नहीं लगता, सामान्यतया नर्मदा परिक्रमा वासियों और स्थानीय लोगों का सरल सा समूह भोज इसी प्रमुख व्यंजन से होता है । भण्डारे (किसी उत्सव ईत्यादि पर धार्मिक स्थलों पर होने वाले खुले समूह भोज ) का भी प्रमुख व्यंजन साधारणत: सब्जीपूरी या दाल बाफले ही होता है ।